आज वृद्ध दिवस है , बुजुर्गो का दिन ,सभी अख़बार , न्यूज़ चेनल , पत्रिकाएं , भरी पड़ी है , बुजुर्गो की बेबसी से , सब सिक्के का एक पहलु देखना चाहते है , और दिखाना चाहतें है , और वो है की बेटे – बहु अपने माँ बाप को मजबूर कर देतें है , घर छोड़ने के लिए||
कभी भी किसी बुजुर्ग पे ज्यादती होती है , तो हमारा समाज सीधा उनके बेटे बहुओं पे इल्जाम लगा देता है , और अधिकतर केस में गलती बेटे कि ही होती है , लेकिन “साहब हर बार बेटे गलत नहीं होते”, कई बार बुजुर्ग लोग भी गलत होते है , और ये कटु सत्य है ||
जब भी दो जनरेशन का मिलन होगा, तो उनके विचारों में, सोच में, उनके व्यवहार में , कार्य करने के तरीकों में, अंतर जरुर मिलेगा , ये स्वाभाविक है ||
इसका मुख्य कारण बुजुर्गो का हट व्यवहार है , वो अपना स्वभाव बदलना नहीं चाहते , इसी वजह से उन्हें नयी पीढ़ी के साथ एडजेस्ट करने में तकलीफ होती है || वो चाहते है की सब उन के हिसाब से चले, जो की मुमकिन नही है नई पीढ़ी के लिए॥ माना उनके पास तजुर्बा ज्यादा है, उन्होंने दिन-दुनिया हमसें से ज्यादा अच्छी तरह देखी है , उन्होंने उस मार्ग पर चल के कामयबी पायी हो , लेकिन नए परिवेश में भी, वो ही मार्ग हमें कामियाबी दिलाएगा इस बात कि क्या गारंटी है ? और यदि हम उन्ही के बताये मार्ग पे चलते रहे, तो खुद अपने पेरों पे खड़े कब होंगे? खुद अपनी मंजिल, अपने रास्ते तय करना कब सीखेंगे ? हर बार हमारे बुजुर्ग ही सही हो ,ये सही नहीं है |
दो जनरेशन के बीच गेप बढ़ रहा है पर क्या इस का कारण नयी पीढ़ी का फास्ट चलना है ,या बुजुर्गो का धीरे चलना ?
माता पिता अपने बच्चों को, ऊँगली पकड़ के चलाना सिखातें है, और युवा अवस्था में जब बच्चें परिपक्व हो जातें है , तो माता पिता का फ़र्ज़ बनता है की वो उन्हें, उनके हिसाब से जीने दें , बुढ़ापे में जब जरुरत है, किसी के सहारें की , तब आप भी उनकी ऊँगली पकड़ के चलिए ना , बुजुर्ग क्यूँ चाहतें है की मरते दम तक, वो ही घर बार चलायें ? उम्र के आखरी पड़ाव पे आ कर, सब जिम्मेदारियों से मुक्त क्यूँ नहीं होतें है बुजुर्ग स्वेच्छा से ?
“जो मजबूर होता है, उसे सहारें की जरुरत होती है , और जो मजबूत होता है, वो ही सहारा बनता है , यही यथार्थ है , और इसे सहज रूप से स्वीकार करने में ही समाज का भला है” ||
समाज को माता पिता का बंटवारा तो दिख जाता है , लेकिन माता पिता अपने बच्चों में , अपने नाती – पोतों में भेदभाव करतें है, वो नहीं दिखता||
समाज को युवाओं का मनमोजी रवैया तो दिखता है , पर समाज को बुजर्गों का हटपन नहीं दिखता|| हर बहु, बेटी बनना चाहती है , लेकिन हर सास माँ नहीं बनना चाहती, लेकिन वो समाज नहीं देखता ||
बुजर्गों की बेबसी लाचारी तो दिखती है , लेकिन बच्चों की उनके प्रति सामान और वफ़ादारी नहीं दिखती ||
यदि बच्चें अपने माता पिता से अलग होतें है, तो उसमें कसूर माता पिता का भी उतना ही होता है , लेकिन समाज वो नहीं देखना चाहता ||
मैं बुजुर्गों को एक साइड में करने या उन्हें तवज्जों ना देने के पक्ष में नहीं हूँ , वरन मैं चाहता हूँ की बुजुर्ग स्वेच्छा से , युवाओं को आगें करें, उन्हें अच्छे या बुरे का निर्णय खुद करने दे , उन्हें अपने भविष्य को खुद चुनने दें , गलती करने पर रोकें , लेकिन बात बात पे टोकें नहीं, बुजुर्ग पैसों , जमीन जायदाद का मोह छोड़ें , अपने सभी बच्चों को एक ही तराजू में तोलें , ना तो खुद का बंटवारा करें और ना ही बच्चों का |
आप बुजुर्ग है अब आप को ऊँगली पकडनी है , इसलिए बेजिझक ऊँगली थामियें और बच्चों के कदम से कदम मिला के चलियें , फिर देखिये ना तो युवा पीढ़ी बुरी है , और ना ही ये नयी दुनिया ||
कभी भी किसी बुजुर्ग पे ज्यादती होती है , तो हमारा समाज सीधा उनके बेटे बहुओं पे इल्जाम लगा देता है , और अधिकतर केस में गलती बेटे कि ही होती है , लेकिन “साहब हर बार बेटे गलत नहीं होते”, कई बार बुजुर्ग लोग भी गलत होते है , और ये कटु सत्य है ||
जब भी दो जनरेशन का मिलन होगा, तो उनके विचारों में, सोच में, उनके व्यवहार में , कार्य करने के तरीकों में, अंतर जरुर मिलेगा , ये स्वाभाविक है ||
इसका मुख्य कारण बुजुर्गो का हट व्यवहार है , वो अपना स्वभाव बदलना नहीं चाहते , इसी वजह से उन्हें नयी पीढ़ी के साथ एडजेस्ट करने में तकलीफ होती है || वो चाहते है की सब उन के हिसाब से चले, जो की मुमकिन नही है नई पीढ़ी के लिए॥ माना उनके पास तजुर्बा ज्यादा है, उन्होंने दिन-दुनिया हमसें से ज्यादा अच्छी तरह देखी है , उन्होंने उस मार्ग पर चल के कामयबी पायी हो , लेकिन नए परिवेश में भी, वो ही मार्ग हमें कामियाबी दिलाएगा इस बात कि क्या गारंटी है ? और यदि हम उन्ही के बताये मार्ग पे चलते रहे, तो खुद अपने पेरों पे खड़े कब होंगे? खुद अपनी मंजिल, अपने रास्ते तय करना कब सीखेंगे ? हर बार हमारे बुजुर्ग ही सही हो ,ये सही नहीं है |
दो जनरेशन के बीच गेप बढ़ रहा है पर क्या इस का कारण नयी पीढ़ी का फास्ट चलना है ,या बुजुर्गो का धीरे चलना ?
माता पिता अपने बच्चों को, ऊँगली पकड़ के चलाना सिखातें है, और युवा अवस्था में जब बच्चें परिपक्व हो जातें है , तो माता पिता का फ़र्ज़ बनता है की वो उन्हें, उनके हिसाब से जीने दें , बुढ़ापे में जब जरुरत है, किसी के सहारें की , तब आप भी उनकी ऊँगली पकड़ के चलिए ना , बुजुर्ग क्यूँ चाहतें है की मरते दम तक, वो ही घर बार चलायें ? उम्र के आखरी पड़ाव पे आ कर, सब जिम्मेदारियों से मुक्त क्यूँ नहीं होतें है बुजुर्ग स्वेच्छा से ?
“जो मजबूर होता है, उसे सहारें की जरुरत होती है , और जो मजबूत होता है, वो ही सहारा बनता है , यही यथार्थ है , और इसे सहज रूप से स्वीकार करने में ही समाज का भला है” ||
समाज को माता पिता का बंटवारा तो दिख जाता है , लेकिन माता पिता अपने बच्चों में , अपने नाती – पोतों में भेदभाव करतें है, वो नहीं दिखता||
समाज को युवाओं का मनमोजी रवैया तो दिखता है , पर समाज को बुजर्गों का हटपन नहीं दिखता|| हर बहु, बेटी बनना चाहती है , लेकिन हर सास माँ नहीं बनना चाहती, लेकिन वो समाज नहीं देखता ||
बुजर्गों की बेबसी लाचारी तो दिखती है , लेकिन बच्चों की उनके प्रति सामान और वफ़ादारी नहीं दिखती ||
यदि बच्चें अपने माता पिता से अलग होतें है, तो उसमें कसूर माता पिता का भी उतना ही होता है , लेकिन समाज वो नहीं देखना चाहता ||
मैं बुजुर्गों को एक साइड में करने या उन्हें तवज्जों ना देने के पक्ष में नहीं हूँ , वरन मैं चाहता हूँ की बुजुर्ग स्वेच्छा से , युवाओं को आगें करें, उन्हें अच्छे या बुरे का निर्णय खुद करने दे , उन्हें अपने भविष्य को खुद चुनने दें , गलती करने पर रोकें , लेकिन बात बात पे टोकें नहीं, बुजुर्ग पैसों , जमीन जायदाद का मोह छोड़ें , अपने सभी बच्चों को एक ही तराजू में तोलें , ना तो खुद का बंटवारा करें और ना ही बच्चों का |
आप बुजुर्ग है अब आप को ऊँगली पकडनी है , इसलिए बेजिझक ऊँगली थामियें और बच्चों के कदम से कदम मिला के चलियें , फिर देखिये ना तो युवा पीढ़ी बुरी है , और ना ही ये नयी दुनिया ||
1 comment:
बहुत ही उमदा लेख
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